डेढ़ दशक पहले सरगुजा क्षेत्र क्यों टापू सा लगता था,किसी को ट्रांसफर में भेजा जाता तो सजा लगता था

डेढ़ दशक पहले सरगुजा क्षेत्र क्यों टापू सा लगता था,किसी को ट्रांसफर में भेजा जाता तो सजा लगता था

अंबिकापुर. लगभग डेढ़ दशक पहले तक पूरे सरगुजा क्षेत्र को ऐसा टापू समझा जाता था जहाँ यदि किसी अधिकारी कर्मचारी को ट्रांसफर में भेजा जाता तो उसे सज़ा के रूप में देखा जाता था। न रोड की हालत अच्छी, न ट्रेन की कनेक्टिविटी, न बेहतर शिक्षा, न बेहतर स्वास्थ्य सुविधा। गंभीर दुर्घटनाओं या बीमारियों में तो रायपुर या बिलासपुर के बड़े अस्पतालों तक सुरक्षित पहुंच पाना ही एक समय चुनौती थी। सरगुजा के सुंदर सुरम्य वातावरण में रहकर भी लोग आधारभूत विकास को तरस रहे थे। कहने का आशय है कि जगह कितनी भी खूबसूरत हो, वातावरण कितना भी शुद्ध हो वहां इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के साथ सुव्यवस्थित मार्केट का होना अत्यंत आवश्यक है। बिजली, पानी, सड़क तथा बेहतर स्वास्थ्य एवं बेहतर शिक्षा के साथ साथ स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी जरूरी है। सरगुजा क्षेत्र के विकास के लिए यहां बड़े उद्योग लगें इसकी मांग लंबे समय से की जाती रही है पर कुछ विकास विरोधी एजेंडे चलाने वाले तत्वों के कारण सरगुजा को विकास के नाम पर हमेशा से छलने का काम किया गया। सूत्र बताते हैं कि दशकों पहले सरगुजा में लगने वाला बाल्को एल्युमीनियम प्लांट विकास विरोधी एजेंडे के कारण कोरबा शिफ्ट कर दिया गया। इफको पावर प्लांट का सरगुजा में लगने से पहले ही इतना विरोध किया गया कि इफको कंपनी ने पूरे छत्तीसगढ़ को ही उद्योग के लिए बेकार बताकर छोड़ दिया। चिरगा तथा परसा में चल रहे एल्युमीनियम तथा कोल उद्योगों को भी ये अराजक तत्व लगातार अपना निशाना बना रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि यह सब सरगुजा की आदिवासी संस्कृति को बचाने के नाम पर किया जा रहा है। क्या आदिवासी भाई बहनों को सिर्फ इसलिए जंगल में रखा जाए ताकि उनकी संस्कृति व परंपराओं की रक्षा हो सके ? यह तर्क गले नहीं उतरता। भारत के संविधान ने जब सुदूर गांव जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए उतने ही अधिकार दिए हैं जितना शहर के निवासियों को फिर क्यूँ कुछ लोग आदिवासी वर्ग को विकास की मुख्य धारा से दूर रखना चाहते हैं ? क्या सरगुजा अंचल को विकास से दूर रखने की साजिश हो रही है ? यदि इतिहास पर नज़र डालें तो दुर्भाग्य से अब तक यही होता आया है। वास्तव में उन्नत सरगुजा, उज्ज्वल हसदेव तब होगा जब सरगुजा में उद्योग होगा। अगर हम चाहते हैं कि सरगुजा आगे बढ़े और समृद्ध हो तो हमारे प्रदेश मे रोजगार सृजन अनिवार्य है। इसके लिए हमें पारंपरिक कृषि और व्यापारिक गतिविधियों से परे सोचना होगा। हमें कुछ ऐसे उद्योगों की ज़रूरत है जो महत्वपूर्ण निवेश लाएँ ताकि मध्यम और लघु उद्योग इकाइयों को बढ़ने के लिए सहारा मिले ताकि स्थानीय रोजगार के विकास को जोर मिले। हमें सुनिश्चित करना होगा कि मौजूदा और भविष्य की औद्योगिक गतिविधियों को बिना किसी बाधा और शांति से संचालित होने दिया जाएगा, तभी उन्नत सरगुजा एवं उज्जवल हसदेव का निर्माण हो सकेगा। पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा है कि राजधानी रायपुर में स्थित कुछ तत्व एनजीओ मंच का दुरुपयोग कर रहे हैं और सरगुजा के विकास का राजनीतिकरण कर रहे हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम सरगुजा को उन्नत बनाना चाहते हैं ताकि हसदेव उज्जवल व अखंड हो सके। मैं जिम्मेदार औद्योगीकरण के माध्यम से विकास का समर्थन करता हूँ तथा उम्मीद करता हूँ कि सरगुजा के लोग भी विकास विरोधी एजेंडा चलाने वालों का विरोध कर उन्हें सबक सिखाएँगे।